शब्दों ने मेरे मुझे
बयाँ करना सिखा दिया
जिंदगी जीने का
नया अंदाज सिखा दिया...
गुमसुम सा रहेता था ये दिल,
खोने, न खोने के डर से
शब्दों से ही मिला बल,
खुद में विश्वास दिला दिया
सोच थी मेहेमान सी
आती थी, चली जाती थी
शब्दों के सहारें ने
सोच को लिखना सिखा दिया..
गम और ख़ुशी का मौसम
आता था, चला जाता था
हर बार शब्दों के सतर्क रूप ने
सोच को ही सकार* कर दिया.
शब्द न थे हाथों में
ना दिल में, ना होठों के काबू
में
मगर शब्द और सजग मन की मित्रता
ने
मुझे दुनियाँ का मित्र बना दिया
शब्दों ने मुझे मेरा मित्र बना
दिया
शब्दों ने मुझे सच्चा मित्र बना दिया
* सकारात्मक
- © हर्षिता