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Wednesday, 2 September 2020

गुमशुदा




अखबरों में जब भी पढ़ती हूँ, वो सच

तोह आँख भर आती हैं,

और दिल को एक सच्चाई महसूस होती हैं,

क्या हैं वह?

कभी माँ, कभी बीवी..

कभी बहन.., कभी बेटी..

न जाने कहाँ गुमशुदा हो गए...

इनसान की सोच से...?

 

क्या यही सच है?

जी नहीं..

कभी वह भी नजर आ जाता हैं,

जो नज़रों से बयां होता हैं,

और नजारा नजर का भी दीखता हैं

क्या हैं वह?

 

तुम मेरी माँ हो, बहन हो, बेटी हो, बहु हो

मन का है इरादा, तुम से हैं ये वादा,

हटा के बुरी नजर का पर्दा

कभी होने न दूं दिल से गुमशुदा

कभी होने न दूं तुम्हे, दिल से गुमशुदा...

-          Jan 2015

 - © हर्षिता

 


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